मंगलवार
को जिउत्पुत्रिका व्रत है। इसकी पूरी तैयारी कर ली गई है। यहां इसे नौ दिवसीय उत्सव
के रुप में मनाया जाता है। इसके लिए शहर में बने सभी चार चौकों को सजाया गया है।
वस्तुत: इन चौकों पर भगवान जिमूतवाहन का प्रतिक ओखली रखा जाता है। इसी की पूजा सभी
व्रति महिलायें सामूहिक रुप से करती हैं। लोक पर्व जीवन को उल्लासित करते है, आनंदित करते है
और संस्कारित भी करते है। इनसे जीवन या समाज की एकरसता दूर होती है और नयी उर्जा
का संचार होता है। सामुहिकता की भावना मजबूत होती है तथा सामाजिक संगठन के रूप में
हम अपने को अभिव्यक्त करते है। लोक पर्व में विविधता होती है और विशिष्टता भी।
लोक-पर्व से किसी देश, किसी
प्रांत, किसी
क्षेत्र, किसी
शहर, किसी
गांव का विशेष पहचान बनती है। ‘कार्निवाल-पर्व’ दुनिया के कई देशों
में मनाया जाता है, किंतु
जर्मनी के कोलोन शहर का कार्निवाल अपनी विशेष पहचान रखता है और विश्व में प्रसिद्ध
है। इसी तरह जिउतिया-पर्व भी भारत के विभिन्न प्रांतों में मनाया जाता है, किंतु दाउदनगर शहर
में जिउतिया मनाने का विषिश्ट ढंग है जो काफी मशहुर है। यहां इसे नकल-पर्व के रूप
में बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है। इसे देखने के लिए झारखंड से और उत्तर प्रदेश के
मिर्जापुर तक से लोग सपरिवार आते है। यही कारण है कि यह अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक
पहचान रखता है।
हम सभी जानते है कि जिउतिया-पर्व
(जीवित-पुत्रिका व्रत) आश्विन मास (सितम्बर-अक्टुबर) में कृष्ण पक्ष की अष्टमी को
मनाया जाता है। इसका विशेष वर्णन ‘भविष्य
पुराण’ में
मिलता है। इस पर्व में माता अपने पुत्र के चिरंजिवी होनी की कामना करती है। इसलिए
जब कोई पुत्र किसी बड़े संकट से बच जाता है तो लोग कहते है - ‘खैर मनाओ कि तुम्हारी
मां जिउतिया की थी, सो
तुम बच गए।’ यह
पर्व तीन दिनों का होता है - एक दिन नहाय-खाय यानी सप्तमी (सोमवार) को माताएं
स्नान करके खाना खाती है, अष्टमी
को उपवास रखकर शाम में पूजा करती हैं और नवमी को सुबह में उपवास तोड़कर ‘पारण’ कर लेती हैं। इस
बार नवमी तिथि बुधवार को है। यहां की खासयित यह है कि यहां इस पर्व का आरम्भ ‘अनन्त पूजा’ के दूसरे दिन से
ही हो जाता है। जिउतिया में जीमूतवाहन भगवान की पूजा की जाती है। पूजा करने के लिए
दाउदनगर में चार चैक बने हुए हैं - पुराना शहर चौक, कसेरा टोली चौक, पटवा टोली चौक और
बाजार चौक। इन चारों चैकों पर जीमूतवाहन भगवान स्थापित हैं।
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