दाउदनगर में सरकारी ताजिया रखा जाता है। कब से और इसमें मुगलिया सरकार की भूमिका क्या रही थी, यह कोई नहीं जानता। यह शहर बिहार के प्रथम गवर्नर सूबेदार दाउद खा का बसाया हुआ है। सन 1662 से 1672 ई. तक शहर का निर्माण हुआ है। आम धारणा है कि दाउद खा ने बरादरी मुहल्ला में सरकारी खर्च पर ताजिया रखवाने की परंपरा प्रारंभ की थी, मगर हकीकत क्या है यह कहीं मजमून के रूप में दर्ज नहीं है। तारीख ए दाउदिया में इसका जिक्र नहीं आता है, जो स्वाभाविक तौर पर दाउद खा और दाउदनगर का इतिहास बताता है। बरादरी मुहल्ला दाउद खा किला के पश्चिम है। पक्के तौर पर यह नहीं कहा जा सकता है कि ताजिया का खर्च दाउद खा देते थे। हालाकि बाद के मुगलिया दौर में ही शासकों की कृपा रही है, सहयोग रहा है। नतीजा आम जनता ने इसे सरकारी ताजिया का तगमा दे दिया, जिसमें आजाद भारत की किसी सरकारी या स्थानीय प्रशासन की कोई भूमिका नहीं रही। बताया जाता है कि अन्य ताजियों की तरह ही इसका वजूद है, सिर्फ नाम का सरकारी है।
खत्म हो गई परंपरा
सरकारी ताजिया से जुड़ी एक परंपरा सात-आठ वर्ष पहले खत्म कर दी गई। बताया जाता है कि मिनहाज नकीब के घर के पास तूफानी खलीफा और मोहन साव के घर के पास मीर साहब का गोला जमता था। इसी बीच सरकारी ताजिया किला की ओर से मर्सिया पढ़ते हुए आता और दोनों गोलों के बीच चिरता हुआ निकल जाता। कई दफा विवाद भी हुआ। इसे देखते हुए समाज के लोगों ने यह पुरानी परंपरा खत्म कर दी और आपसी विचार सहयोग से नई व्यवस्था लागू हुई कि देहाती क्षेत्र के ताजिया के साथ शहरी ताजिया से एक रोज पूर्व इसका पहलाम होता है।
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