(पांच राज्यों में चुनाव परिणाम-त्वरित टिप्पणी)
2019 का सेमीफाइनल बताये जा रहे पांच राज्यों के चुनाव परिणाम बहुत
कुछ कहते हैं|
इस परिणाम का वजह क्या है?
विकास और महंगाई के साथ भ्रष्टाचार क्या वास्तव में चुनावी मुद्दे
अभी हैं? यदि ऐसा होता तो ख़ास कर उत्तर प्रदेश में ऐसा परिणाम नहीं आता| अखिलेश ने
पूर्व की अपेक्षा विकास किया| विकास, जनता यह मान कर चल रही है कि सरकार
किसी की हो समय-समय पर महंगाई आयेगी ही आयेगी| टमाटर दो रूपए किलो से लेकर सौ रूपए
किलो तक बिकेंगे ही| विकास होगा ही| दुर्भाग्य से भारत में सत्तर साल की आजादी के
बाद भी विकास के मायने विश्व विद्यालय, बड़े अस्पताल, नहीं हैं| नाली गली,
मुफ्तखोरी ही बड़ा विकास माना जाता है| विकास मुद्दा होता तो अटल बिहारी वाजपेयी
हारते नही और न ही 100 से अधिक विधायक वाले नीतीश कुमार लालू संग जाकर भी 50 सीट
पर सिमटते| भ्रष्टाचार एक हद तक मुद्दा है| विपक्ष का दुर्भाग्य है कि व्यक्तिगत
तौर पर न नरेंद्र मोदी न केंद्र सरकार पर भ्रष्टाचार के पुख्ता आरोप लगे हैं|
असली वजह है अति मुस्लिम परस्ती| जिसके खिलाफ 2014 में मोदी जीते और
2017 में उत्तर प्रदेश जीता| सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल क्या सिर्फ मुस्लिम मत के तुष्टीकरण
के लिए नही उठाये गए थे? बुरहान वानी, रामजस कॉलेज, जेएनयू, अफजल हम शर्मिन्दा है
तेरे कातिल ज़िंदा है, भारत तेरे टूकडे होंगे-इंशाल्लाह इंशाल्लाह, पुरस्कार वापसी
क्या सिर्फ मुस्लिम मतों की चाहत के मुद्दे नहीं थे, इनके समर्थन में उतरने वाले
क्या चाहते थे? अभिव्यक्ति की आजादी के पैरोकार तब कहाँ थे जब देवी माने जाने वाली
सरस्वती को नंगा दिखाया गया था| क्या मकबूल फ़िदा हुसैन इस्लाम के किसी चरित्र को
नंगा दिखा सकते है? जब खुद को नंगा नहीं कर सकते तो दूसरे की माँ को नंगा करना
सेकुलरिज्म व अभिव्यक्ति की आजादी कैसे है जनाब? चुरकी पर 786 लिख देने वाले को
दशक बाद उड़ा देना अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला नहीं है तो मकबूल का विरोध करना गलत
कैसे है? अफजल हम शर्मिन्दा है तेरे कातिल ज़िंदा है, यह सीधे ही सुप्रीम कोर्ट के
खिलाफ है या नहीं? तब भी इसके खिलाफ बोलने की जगह साथ खडा होना कैसी राजनीति है? ऐसी
राजनीति जब भी होगी, भाजपा ताकतवर होगी| कांग्रेस तो एंटनी की वह रिपोर्ट भी खारिज
कर दी जिसमें कहा था कि कांग्रेस की दुर्गति की वजह ही अति मुस्लिम परस्ती है| सिर्फ
इसी वोट बैंक की वजह से देश व समाज के खिलाफ नेता बोलते हैं| गुजरात याद है? गोधरा
में मारे गए व्यक्ति भारतीय नहीं थे, क्योंकि वे हिन्दू थे? इस घटना की निंदा किसी
स्वयभू सेकुलर दलों ने नहीं की थी| जब गुजरात हो गया तो बवाल हुआ क्योंकि इस बहाने
सभी मुस्लिम मत के मसीहा बनने में जुट गए थे| तीन बार जो व्यक्ति अपनी बदौलत
मुख्यमंत्री बना, जो वंश की वजह से नहीं सीएम बना था, उसे क्या क्या कहा गया? याद
करिए? गुजरातियों को मुर्ख कहा गया| यानी जो आपके साथ है वह काबिल जनता है और
भाजपा के साथ जो है वह मुर्ख इतना है कि उसे बरगला दिया जाता है| अभी ताजा मामला
में भी अखिलेश यही कह गए कि-समझाने से नहीं बहकाने से मत मिलता है| सवाल है कि यदि
ऐसा ही है तो यह कैसे न माना जाए कि 2012 में भी जनता बहक कर आपको वोट दी थी| यह
दोहरा चरित्र क्यों? जब पीएम बन गए मोदी तो भी ऐसी ही बात कही गयी| अरे भाई, यदि
सत्तर साल में जनता इतनी बेवकुफ़ बनी रही तो इसके लिए भला मोदी कैसे जिम्मेदार हो
गये? इसके जिम्मेदार भी तो सेकुलर दलें ही हैं| अब एक तर्क (कुतर्क) ये सेकुलर
पार्टी दे रहे हैं कि केंद्र की सरकार अल्पमत की है| और यूपी में भी| 50 फीसद से
कम मत प्राप्त सरकार| हद है| 60-65 साल सत्ता में रहने वाली एक सरकार बताइए कि कब
50 फीसद मत लेकर चुना गया कोइ प्रधानमंत्री? नियम बना देते कि 50 फीसद प्लस एक मत
लेकर ही कोइ सत्ता में रह सकता है| यह नही किया तो क्यों नही किया?
राजनीति बदलिए यदि सच में भाजपा को कमजोर देखना है तो, अन्यथा दोगली
व छद्म सेकुलरिज्म बनाम साप्रदायिकता की जंग में गैर भाजपा को लंबा इंतज़ार करना
होगा| और इस स्थिति का नुकसान देश को ही होगा| हो भी रहा है| आज कई समुदाय शक की
नजर से देखे जाने के कारण ही मुख्यधारा से अलग है|
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