-------------------उपेन्द्र कश्यप-------------------------
हरियाणा के मोक में बस में
रेप हुआ तो राजनीति गर्मा गई। बस मुख्यमंत्री बादल के परिजनों द्वारा संचालित
ट्रांसपोर्ट का है। नेता जी लोग संचालकों के खिलाफ कारर्वाई की मांग कर रहे हैं।
अच्छा है।
मेरे मन में कुछ सवाल उठे
तो समझा कि आपसे साझा कर लूं। देश के लिए यह ज्वलंत मुद्दा है और मेरी समझ से मेरे
सवाल का हल किये बिना ऐसी समस्या से निजात पाना संभव नहीं है।
सवाल है क्या न्यायालय में ट्रांसपोर्ट मालिक के
खिलाफ सजा का फैसला हो सकेगा? वह कितना कसूरवार है? हां यह हो सकता है कि मालिक
रसूखदार हो तो उसका मजदूर उग्र हो, लेकिन क्या इस बात की कोई गारंटी ले सकता है कि
नौकर मालिक के घर ही छेडखानी या लूट न कर सके? अगर ऐसा कोई नौकर मजदूर करेगा क्या
तब भी मालिक के खिलाफ कारर्वाई होनी चाहिए?
क्या यह नहीं होना चाहिए कि
सार्वजनिक स्थानों पर होने वाले अपराध के लिए सामूहिक जिम्मेदारी तय की जाये। जैसे
जिस बस में अपराध हुआ उसमें सवार सभी ड्राइवर, कंडक्टर और खलासी के साथ सभी
सवारियों को एक समान दोषी मान जाये। जब ऐसा होगा तो भीड अपराधी को अपराध करने से
रोकेगी। प्राय: रेप पूर्व नियोजित नहीं होते और न ही बलात्कारी सशस्त्र होता है।
ऐसा कानून नही6 होने के कारण ही हम यह सोचते हैं कि रेप तो उसका हो रहा है मुझे
क्या। मैं क्यों बचाने के चक्कर में पडुं? जब यह भावना खत्म हो जायेगी तब भला कोई
समूह अपने सामने किसी दो चार हरामी को बलात्कार तो नहीं ही करने देगा। किसी
सार्वजनिक स्थल पर हत्या हो और वहां (अगर) तैनात सुरक्षाकर्मी को भी अपराधी मान
अजाये तो फिर अपराध होगा क्या? अधिकतम मामलों में पुलिस खामोश होती क्योंकि उसका
हित सधता है उसे नुकसान की आशांक नहीं रहती।
मैं नहीं जानता कि ऐसे
कानून कब बनेंगे या नहीं बनेंगे किंतु ऐस अहोगा तो उम्मीद अवश्य है कि सार्वजनिक
स्थलों पर अपराध कम से कम या तो नहीं होंगे या फिर यदा-कदा होंगे?
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