मगध क्षेत्र की भूमि बौद्ध कालीन इतिहास से आवश्यक
रूप से संबद्ध रखती है । यह वही भूमि है जिसने बौद्धधर्म की जड़ को जमीन ही नहीं
अपितु खाद-पानी भी प्रदान किया तथा इसके महायानमत को भावभूमि प्रदान कर उसे
संपूर्ण हिन्दुस्तान से चीन तक विस्तारित एवं प्रतिष्ठापित किया तथापि इस क्षेत्र
के कई ऐसे महत्वपूर्ण स्थान इतिहास के पन्नों में स्थान नहीं पा सके जिनकी
ऐतिहासिक पृष्टभूमि से बौद्धकालीन इतिहास को नये सफाहात मिल सकते थे । ऐसा ही एक
स्थान औरंगाबाद जिलांतर्गत ओबरा प्रखण्ड मुख्यालय से मात्र 6 कि.मी. दूर पूर्व दिशा में पुनपुन नदी के तट पर मरोवां के नाम से विख्यात
लेकिन उपेक्षित है, जिसे बुद्ध के जीवनकाल से लेकर ईस्वी सन्
के प्रारम्भिक सात शताब्दियों तक के इतिहास से विस्मृत हुए तथ्यों की प्रमाणिकता
के लिए अन्वेषण दल की प्रतीक्षा है । यहाँ ध्यानस्थ बुद्ध की छह फीट ऊँची काले
पत्थर से निर्मित एक प्रतिमा स्थापित है जो कम-से-कम साढ़े तेरह सौ साल प्राचीन है
।
यह ऐतिहासिक तथ्य है कि ईस्वी सन् के प्रथम सदी में हिन्दुस्तान पर
कुषाणों का शासन प्रारंभ हुआ इसी शासनकाल में अर्थात बुद्ध के पाँच सौ साल बाद ही
बौद्ध धर्म में दो मत हीनयान और महायान के रूप में सामने आया । महायान मत में ही-
जो कि पूरे हिन्दुस्तान एवं चीन में फैला और इसका श्रेय पहली सदी में जन्में
नागार्जून को जाता है- बुद्ध को ईष्वर की मान्यता दी गयी और इनकी साकार रूप में
पूजा (उपासना) की जाने लगी । चूंकि बौद्ध धर्म हठवादी नहीं था और अपनी नैतिक
पृष्ठभूमि की रक्षा करते हुए किसी भी चीज (सिद्धांत रूप में) से समझौता करना इसकी
प्रवृत्ति रही है, फलतः यह धर्म हिन्दुओं के बहुत करीब होता
गया आज इस तथ्य का स्पष्ट साक्ष्य मरोवां प्रस्तुत करता है जहाँ कि बुद्ध प्रतिमा
की उपासना हिन्दू धर्म नीतियों के अनुसार की जाती रही है । उपेंद्र कश्यप
हरियाणा के मोक में बस में
रेप हुआ तो राजनीति गर्मा गई। बस मुख्यमंत्री बादल के परिजनों द्वारा संचालित
ट्रांसपोर्ट का है। नेता जी लोग संचालकों के खिलाफ कारर्वाई की मांग कर रहे हैं।
अच्छा है।
मेरे मन में कुछ सवाल उठे
तो समझा कि आपसे साझा कर लूं। देश के लिए यह ज्वलंत मुद्दा है और मेरी समझ से मेरे
सवाल का हल किये बिना ऐसी समस्या से निजात पाना संभव नहीं है।
सवाल है क्या न्यायालय में ट्रांसपोर्ट मालिक के
खिलाफ सजा का फैसला हो सकेगा? वह कितना कसूरवार है? हां यह हो सकता है कि मालिक
रसूखदार हो तो उसका मजदूर उग्र हो, लेकिन क्या इस बात की कोई गारंटी ले सकता है कि
नौकर मालिक के घर ही छेडखानी या लूट न कर सके? अगर ऐसा कोई नौकर मजदूर करेगा क्या
तब भी मालिक के खिलाफ कारर्वाई होनी चाहिए?
क्या यह नहीं होना चाहिए कि
सार्वजनिक स्थानों पर होने वाले अपराध के लिए सामूहिक जिम्मेदारी तय की जाये। जैसे
जिस बस में अपराध हुआ उसमें सवार सभी ड्राइवर, कंडक्टर और खलासी के साथ सभी
सवारियों को एक समान दोषी मान जाये। जब ऐसा होगा तो भीड अपराधी को अपराध करने से
रोकेगी। प्राय: रेप पूर्व नियोजित नहीं होते और न ही बलात्कारी सशस्त्र होता है।
ऐसा कानून नही6 होने के कारण ही हम यह सोचते हैं कि रेप तो उसका हो रहा है मुझे
क्या। मैं क्यों बचाने के चक्कर में पडुं? जब यह भावना खत्म हो जायेगी तब भला कोई
समूह अपने सामने किसी दो चार हरामी को बलात्कार तो नहीं ही करने देगा। किसी
सार्वजनिक स्थल पर हत्या हो और वहां (अगर) तैनात सुरक्षाकर्मी को भी अपराधी मान
अजाये तो फिर अपराध होगा क्या? अधिकतम मामलों में पुलिस खामोश होती क्योंकि उसका
हित सधता है उसे नुकसान की आशांक नहीं रहती।
मैं नहीं जानता कि ऐसे
कानून कब बनेंगे या नहीं बनेंगे किंतु ऐस अहोगा तो उम्मीद अवश्य है कि सार्वजनिक
स्थलों पर अपराध कम से कम या तो नहीं होंगे या फिर यदा-कदा होंगे?
नेपाल विश्व का एक मात्र हिंदू
राष्ट्र है। हजारों लोगों की जान भूकंप में चली गई। लोग अपना घर, परिवार खो कर जीवन
के सबसे गंभीर संकट से जुझ रहे हैं। ऐसे में विश्व के तमाम राष्ट्र सहयोग में
उतरे। सभी सहयोग कर रहे हैं। सनातनी भारत इसमें आगे है। बौद्ध धर्मावलंबी चीन,
जापान, इसाइयत को मानने वाले अमेरिका समेत कई युरोपीय कंट्री, यहुदी इजरायल सब
सहयोग कर रहे हैं। किंतु पाकिस्तान जो जन्मना धर्मान्ध है, उसने इस संकट की घडी
में भी खाने के लिए गोमांस भेजा, वह भी सेना के कैंप से पैकिंग कराकर। इसमें अब
जांच क्या करेगा वह। यहां गो-हत्या प्रतिबन्धित है, यह सर्वविदित है। नेपाल के
संस्कृति मंत्री ने कहा भी कि हमारी संस्कृति के साथ खिलवाड बर्दास्त नहीं होगा।
यह मुद्दा इतना ‘अगंभीर’ है कि सभी सेकुलर जमातें खामोशी ओढ लीं। क्या अगर
पाकिस्तान को भारत या नेपाल राहत सामग्री में सुअर का मांस खाने को भेजते तो
सेकुलर जमातें खामोश रहती? क्या वे बतायेंगे कि यह घिनौनी हरकत है भी या नहीं? इसकी
प्रशंसा तो कर ही सकते थे या फिर वे यह कह सकते थे कि- “त्रासदी में आदमी अपना
पेशाब भी पी लेता है, कुछ भी खा लेता है तो अगर पाकिस्तान ने बीफ मशाला भेज दिया
तो गलत क्या किया? मदद में जो भेज दिया कम थोडे हैं। इसे मुद्दा बनाना राजनीति
करना है।“ यकीन जानिये अगर सेकुलर जमातें ऐसा बोलतीं तो उनका वोट बैंक मजबूत होता?
वास्तव में जिस अन्ध धर्मान्धता ने पाकिस्तान को जन्म दिया वह उसके जीन में आज भी
है। विश्व को यह समझने की जरुरत है कि इस्लामिक देशों के लिए दूसरे धर्म को
नेस्तनाबुत करने के अलावा कोई दूसरा धर्म नहीं होता। उसका संस्कार मानवीय नहीं
होता। वह इस धर्म को मनता है कि जो मेरे धर्म को कबूल नहीं करता वह काफिर है और
काफिरों को जीने का कोई हक नहीं है। देश चाहे कोई भी हो, जहां आतंकवाद चरम पर है,
जितने आतंकी हमले हुए उसके पीछे के कारण आप देख लें, लक्ष्य सिर्फ एक ही होता है- “मुझे
मानो या धरती छोडो।“ ऐसे अमानवीय संस्कार वालों से विश्व अगर अब भी यह अपेक्षा
करता है कि संकट में उसकी ओर से बढे हाथ मानवीय वजह से है, बिना पूर्वाग्रह के है,
तो गलत पाकिस्तान या अन्य कोई भी इस्लामिक देश नहीं है बल्कि दोष गैर इस्लामिक
देशों का है। जो अब भी कट्टर धर्मान्धों से यह उम्मीद रख रहे हैं कि वे मानवीय बन
जायेंगे।
'बीफ मसाला' पर पाक ने दी सफाई, कहा- बदनाम कर रहा है भारत
काठमांडू। भूकंप
की त्रासदी से जूझ रहे नेपाल को पाकिस्तान ने राहत सामग्री के तौर पर बीफ मसाला
[गोमांस मसाला] के पैकेट भेजे जाने के मामले पर सफाई देते हुए पाकिस्तान के विदेश
मंत्रालय के प्रवक्ता तसनीम असलम ने कहा कि पाकिस्तान ने नेपाल में जो 'रेडी टू ईट' सामग्री भेजी है
उसको बनाने में किसी भी प्रकार से गौमांस का प्रयोग नहीं किया गया है। असलम ने कहा
कि बीफ मसाला पैकेट की जो बात की जा रही है वो भारतीय मीडिया की देन हैं। हमारा
भारतीय मीडिया से आग्रह है कि नेपाल में मानवीय सहायता के प्रयास लिए वो हमें 'बदनाम' न करे।
नेपाल को पाकिस्तान ने राहत सामग्री के तौर पर बीफ मसाला
[गोमांस मसाला] भेज दिए हैं। इस पैकेट के हरे रंग के चलते इन्हें कोई हाथ भी नहीं
लगा रहा है। नेपाल में हिंदुओं की बहुलता है और वहां पर गौ हत्या व गौमांस पर कड़ा
प्रतिबंध है। वहां पर ऐसा करने पर 12 साल कैद की सजा
है। इससे पहले वहां पर यह अपराध करने पर फांसी दी जाती थी।
नेपाल के अधिकारियों ने इस बाबत प्रधानमंत्री सुशील कोइराला को
जानकारी दे दी है। बताया जा रहा है कि इस मामले की अंदरूनी जांच शुरू कर दी गई है।
यदि मामला सही निकला तो इसे कूटनीतिक स्तर पर पाकिस्तान के सामने उठाया जाएगा।
भारत को भी जानकारी दी जाएगी। इस घटना के चलते सार्क सदस्य दोनों देशों के रिश्तों
में कटुता आ सकती है।
काठमांडू के बीर अस्पताल में राहत कार्य में लगे हुए
भारतीय डॉक्टर के हवाले से कहा गया कि अधिकतर स्थानीय लोगों को इस बारे में
जानकारी नहीं है। जब उन्हें इस बात का पता चला, तो सभी ने इससे
बचने की कोशिश की।पाकिस्तान के
विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता तसनीम असलम ने कहा कि उन्हें इस बारे में जानकारी नहीं
है। राहत सामग्री राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण द्वारा भेजी जाती है।