तत्कालीन विधायक सत्यनारायण सिंह अपने राजनीतिक गुरु रामबिलास सिंह के साथ |
० अनुमंडल कार्यालय के सामने लगाई गयी
उनकी प्रतिमा
० दाउदनगर को अनुमंडल बनवाने का है उनका
ही श्रेय
० उपेन्द्र कश्यप०
शुक्रवार 04 जनवरी 2019 को एक बार
फिर से जी उठे राम बिलास सिंह। उनके निधन के बाद उनके पुनर्जीवित होने के बीच 3477 दिन गुजर चुके हैं। उनका निधन 22 जून 2009 को हुआ था। इसके बाद उनको
मूर्त रूप में जीवित करने की कोशिश लगातार होती रही। पृथ्वी छोड़कर किसी और दुनिया
में जाने के बाद इनके बारे में जानने की जिज्ञासा कईयों में थी। उनके निधन के बाद
मैंने लगातार प्रत्येक वर्ष दैनिक जागरण में उनको स्मरण करता/कराता रहा था। जब
2012 में सन्दर्भ ग्रन्थ “उत्कर्ष” का (द्वितीय अंक) प्रकाशित किया तो उसमें दाउदनगर
अनुमंडल के जिन पांच महान आत्माओं का जीवनवृत प्रकाशित किया था उसमें राम बिलास
बाबू भी एक थे। उनसे मिलने और उनका साक्षात्कार लेने का कई अवसर मैंने गढ़ा। उनके राजनीतिक
और सामाजिक अनुभव को सार्वजनिक किया। अपने जीवन के अंतिम क्षण में उनके अनुभव बहुत
कटु हो गए थे। समाज और राजनीति दोनों क्षेत्र से। उन्होंने अनुमंडल बनाने के लिए क्या-क्या
संघर्ष किया- यह अखबार में छपने के अतिरिक्त 2007 में प्रकाशित संदर्भ ग्रन्थ “उत्कर्ष”
में विस्तार पूर्वक पहली बार पूरा संघर्ष लिखा। जिसे बाद में कुछ पत्रकारों ने उत्कर्ष
का श्रेय काटकर प्रकाशित किया। अब उनकी प्रतिमा इसी अनुमंडल कार्यालय के सामने खड़ी
की गयी है। विधिज्ञ संघ के प्रयास से।
ऊर्जा मंत्री बिजेंद्र यादव ने
अनावरण किया। विधायक बीरेंद्र सिन्हा, पूर्व विधायक सत्यनारायण सिंह और जदयू के
वरिष्ठ नेता प्रमोद सिंह चंद्रवंशी ने अनावरण में साथ निभाया। प्रतिमा के लिए भी
संघर्ष चला। करीब सात-आठ वर्ष पूर्व तत्कालीन विधायक सत्यनारायण सिंह ने प्रतिमा
स्थापना के लिए शिलान्यास किया था। आज वह मूर्तरूप में सबके सामने है। पूर्व
विधायक सत्यनारायण सिंह ने कहा कि जब विधायक बना तो पता चला कि तीन पूर्वजों राम
बिलास सिंह (तब जीवित थे), संत पदारथ सिंह और राम नरेश सिंह का सामाजिक राजनीतिक
योगदान काफी है। तीनों महान आत्माओं की प्रतिमा लगाने का काम किया। राष्ट्रीय इंटर
स्कूल में संत पदारथ और राम नरेश सिंह की तथा ओबरा में संत पदारथ की प्रतिमा लगवाया।
राम बिलास सिंह के निधन के बाद कुछ माह तक ही विधायक रह सके थे सत्यनारायण सिंह। याद
करें वे 2005 में विधायक बने थे। इसके बावजूद उनकी प्रतिमा एक स्कूल में लगवाया। उन्होंने
अब मांग की है कि दाउदनगर-नासरीगंज सोन पुल का नामकरण इनके नाम पर हो।
जाति नहीं जमात और विकास की बात
करते थे
राज्य अति पिछड़ा आयोग के पूर्व
सदस्य, जदयू के वरिष्ठ नेता प्रमोद सिंह चंद्रवंशी ने कहा कि राम बिलास सिंह जाति
नहीं जमात की राजनीत करते थे। हालांकि उनके नाम लेकर राजनीति करने वाले जात की बात
करते हैं। यह गलत है, सुधार जरुरी है। कहा कि लंबी प्रतीक्षा के बाद मंत्री
बीजेन्द्र यादव ने अनावरण किया जो स्व.राम बिलास सिंह के साथ काम कर चुके हैं।