फोटो-गुफा में वह पिंड जिसे शिव रूप में पूजा जाता है
ऐसे शिव का रूप- जो न तस्वीरों में दिखता है न प्रतिमाओं में
उरांव-कुडूखों के हटने और खरवारों के आने से बना ‘गुप्ताधाम’
उपेंद्र कश्यप । डेहरी
गुप्ताधाम महोत्सव मनाया जा रहा है। गुप्ताधाम शिवनगरी के रूप में चर्चित है। महाशिवरात्रि पर यहाँ हजारों की भीड़ इकट्ठा होती है और वादियां बम बम भोले, जय शिवशंकर, जय भोले नाथ के उदघोष से गूंज उठती है। वातावरण भक्तिमय हो उठता है। गुप्ताधाम की गुफा में शिवलिंग की नहीं चुना पत्थर के जमे पिंड की पूजा शिव रूप में की जाती है। धार्मिक आस्था अपनी जगह है, किन्तु विज्ञान भी समझा जाना चाहिए। जिस शिव को यहाँ पूजा जाता है, वैसी तस्वीर तो कहीं भी किसी शिवलिंग की नहीं मिलती, न ही ऐसी प्रतिमाएं कहीं मिलती-दिखती हैं। आप तस्वीर में साफ़ इसे देख सकते हैं। वास्तव में यह चुना-पत्थर का जमा हुआ पिंड है। जिसे हम शिव रूप में पूजते चले आ रहे हैं। सदियों से, न जाने कब से? शायद जब खरवार कारुष प्रदेश के इस हिस्से में आये, जमे और उरांव-कुडूखों को हटना पडा, तब से? प्रदेश के वरिष्ठ कवि और पत्रकार अनिल विभाकर की एक कविता की अंतिम पंक्ति है-'लोग पत्थर नहीं अपनी- अपनी आस्था पूजते हैं।' यही भावना गुप्ताधाम में दिखती है। लोग वास्तव में अपनी आस्था ही पूजते हैं। और बात जब आस्था की आती है तो कोइ तर्क काम नहीं आता।
तीन स्थानों पर हैं इस तरह के बने शिवालय:-
सीमेंट उद्योग के लिए जो चुना पत्थर चाहिए, उसकी उपलब्धता इस कैमूर पर्वता श्रृंखला में खूब है। पहाड़ की गुफाओं में बरसात के जल से गल कर चुना पत्थरों ने कई जगह शिवालय बना दिए हैं। जो कि उच्छैल या पिंड (स्टैलेग्माइट्स) हैं। 'सोन के पानी का रंग' पुस्तक में देवकुमार मिश्र ने बताया है कि ऐसे स्थान मिर्जापुर के पिराड़ी की पहाडी गुफा में ‘गुपुत महादेव का मंदिर’, ओबरा (उत्तर प्रदेश) पहाडी खोह का शिवालय और रोहतास का गुप्तेश्वर धाम शामिल है।
सुरजवंशी खरवार ही प्रसाद के हकदार:-
रोहतास उपत्यका मुख्यत: खरवारों का भूखंड माना जाता है। इन्हीं का था प्रसिद्ध तीर्थ ”गुप्ता” जो अब गुप्ताधाम कहा जाता है। आज भी इस स्थान के चढ़ावे का हकदार खरवार पुजारी ही होता है। इस क्षेत्र में बसे खरवार खुद को सुरजवंशी कहते हैं। लेकिन यहाँ सोमवंशी (चंद्रवंशी) खरवार भी रहते हैं।
किवंदतियों में गुप्ताधाम:-
गुप्ताधाम से कई किवंदतियां जुड़ी हुई है।
इससे शिव द्वारा अमरत्व का आशीर्वाद देने, आशीर्वाद बाद भस्मासुर बनने और फिर पार्वती की चाह में विष्णु के प्रपंच से खुद ही भस्मासुर के मारे जाने का पौराणिक किस्सा जुडा हुआ है।
जम्मू के शिवखेड़ी में भी यही किवंदति:-
पार्वती-भस्मासुर-विष्णु की जो कहानी गुप्ताधाम से जुड़ी हुई है, वही किस्सा जम्मू स्थित शिवखेड़ी में भी सुनाई-बताई जाती है। वहां भी इसी तरह की संकरी गुफा है।
ऐसे शिव का रूप- जो न तस्वीरों में दिखता है न प्रतिमाओं में
उरांव-कुडूखों के हटने और खरवारों के आने से बना ‘गुप्ताधाम’
उपेंद्र कश्यप । डेहरी
गुप्ताधाम महोत्सव मनाया जा रहा है। गुप्ताधाम शिवनगरी के रूप में चर्चित है। महाशिवरात्रि पर यहाँ हजारों की भीड़ इकट्ठा होती है और वादियां बम बम भोले, जय शिवशंकर, जय भोले नाथ के उदघोष से गूंज उठती है। वातावरण भक्तिमय हो उठता है। गुप्ताधाम की गुफा में शिवलिंग की नहीं चुना पत्थर के जमे पिंड की पूजा शिव रूप में की जाती है। धार्मिक आस्था अपनी जगह है, किन्तु विज्ञान भी समझा जाना चाहिए। जिस शिव को यहाँ पूजा जाता है, वैसी तस्वीर तो कहीं भी किसी शिवलिंग की नहीं मिलती, न ही ऐसी प्रतिमाएं कहीं मिलती-दिखती हैं। आप तस्वीर में साफ़ इसे देख सकते हैं। वास्तव में यह चुना-पत्थर का जमा हुआ पिंड है। जिसे हम शिव रूप में पूजते चले आ रहे हैं। सदियों से, न जाने कब से? शायद जब खरवार कारुष प्रदेश के इस हिस्से में आये, जमे और उरांव-कुडूखों को हटना पडा, तब से? प्रदेश के वरिष्ठ कवि और पत्रकार अनिल विभाकर की एक कविता की अंतिम पंक्ति है-'लोग पत्थर नहीं अपनी- अपनी आस्था पूजते हैं।' यही भावना गुप्ताधाम में दिखती है। लोग वास्तव में अपनी आस्था ही पूजते हैं। और बात जब आस्था की आती है तो कोइ तर्क काम नहीं आता।
तीन स्थानों पर हैं इस तरह के बने शिवालय:-
सीमेंट उद्योग के लिए जो चुना पत्थर चाहिए, उसकी उपलब्धता इस कैमूर पर्वता श्रृंखला में खूब है। पहाड़ की गुफाओं में बरसात के जल से गल कर चुना पत्थरों ने कई जगह शिवालय बना दिए हैं। जो कि उच्छैल या पिंड (स्टैलेग्माइट्स) हैं। 'सोन के पानी का रंग' पुस्तक में देवकुमार मिश्र ने बताया है कि ऐसे स्थान मिर्जापुर के पिराड़ी की पहाडी गुफा में ‘गुपुत महादेव का मंदिर’, ओबरा (उत्तर प्रदेश) पहाडी खोह का शिवालय और रोहतास का गुप्तेश्वर धाम शामिल है।
सुरजवंशी खरवार ही प्रसाद के हकदार:-
रोहतास उपत्यका मुख्यत: खरवारों का भूखंड माना जाता है। इन्हीं का था प्रसिद्ध तीर्थ ”गुप्ता” जो अब गुप्ताधाम कहा जाता है। आज भी इस स्थान के चढ़ावे का हकदार खरवार पुजारी ही होता है। इस क्षेत्र में बसे खरवार खुद को सुरजवंशी कहते हैं। लेकिन यहाँ सोमवंशी (चंद्रवंशी) खरवार भी रहते हैं।
किवंदतियों में गुप्ताधाम:-
गुप्ताधाम से कई किवंदतियां जुड़ी हुई है।
इससे शिव द्वारा अमरत्व का आशीर्वाद देने, आशीर्वाद बाद भस्मासुर बनने और फिर पार्वती की चाह में विष्णु के प्रपंच से खुद ही भस्मासुर के मारे जाने का पौराणिक किस्सा जुडा हुआ है।
जम्मू के शिवखेड़ी में भी यही किवंदति:-
पार्वती-भस्मासुर-विष्णु की जो कहानी गुप्ताधाम से जुड़ी हुई है, वही किस्सा जम्मू स्थित शिवखेड़ी में भी सुनाई-बताई जाती है। वहां भी इसी तरह की संकरी गुफा है।
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