झोपडी
के बाहर पीपल के नीचे स्कूल
गुल्ली
बिगहा प्राथमिक स्कूल का हाल
भूमिहीन
स्कूल, खुद से बनाई झोपडी
सभी
क्लास व बच्चे एक साथ है बैठते
विश्व विख्यात महान दार्शनिक अरस्तु ने कहा था कि- ‘शिक्षा
की जड़ें कडवी हैं, किन्तु फल बहुत ही मीठा है|’ सिन्दुआर पंचायत स्थित गुल्ली
बिगहा प्राथमिक विद्यालय का हाल देख कर लगता है कि वास्तव में शिक्षा की जड़, तना,
पत्ता तक कड़वा है और फल की उम्मीद बहुत दूर है, भले ही उसके मीठा होने की सौ फीसदी
गारंटी है| यहाँ कक्षा एक से पांचवीं तक पढाई होती है| इसकी व्यवस्था देख कर कोइ
बता दे कि आखिर कैसे यहाँ शिक्षा ग्रहण कर उसका मीठा फल बच्चे प्राप्त कर सकेंगे|
मखरा-अंगराही पथ पर सड़क किनारे एक झोपडी है| यही स्कूल है जहां बच्चे शिक्षा ग्रहण
कर रहे हैं| प्रभारी प्रधानाध्यापक गोपेन्द्र कुमार सिन्हा बताते हैं कि इस
भूमिहीन विद्यालय में कुल 26 बच्चे नामांकित हैं| सभी जमीन पर बोरा बिछा कर पीपल
पेड़ के नीचे बैठते हैं और शिक्षा ग्रहण करते हैं| सभी कक्षा के सभी उपस्थित बच्चे
एक साथ बैठते हैं| पीपल वृक्ष के नीचे बुद्ध बनाने की कोशिश में जुटे हुए हैं श्री
सिन्हा| बताते हैं कि 14 फरवरी 2014 को इस स्कूल को प्रारम्भ किया गया था| तब से
मात्र एक बार अभी तक विकास राशि पांच हजार रूपए मिला है| इसी से झोपडी का छप्पर
छवाया एक कुर्सी खरीदी ताकि खुद बैठ सकें और स्कूल संचालन के लिए आवश्यक स्टेशनरी
का क्रय किया| पूरे तरह महादलित आबादी के लिए इस स्कूल को खोला गया था| मुख्य
मंत्री नीतीश कुमार का महादालित प्रेम जग जाहिर है| ऐसे ही महादलित बुद्धू से
बुद्ध बन रहे हैं| शायद पीपल वृक्ष प्रेरक बन गया है यहाँ|
पेड़
पर बैठ स्वास्थ्य जांच
इस
स्कूल में एक बार चिकित्सा टीम बच्चों के स्वास्थ्य जांच के लिए पहुंचे| उन्हें
पेड़ पर बैठ कर बच्चों का स्वास्थ्य जांच करना पडा| यहाँ बैठने की कोइ जगह नहीं है|
बस एक कुर्सी और फिर सारी जमीन बैठने को है ही|
झोला
में कार्यालय
प्रभारे
प्रधानाध्यापक गोपेन्द्र कुमार सिन्हा स्कूल कार्यालय को अपने झोले में रखते हैं|
पूरा कार्यालय बस झोले में है| साइकिल आवागमन का एक मात्र साधन| घर बहुत दूर नहीं
इसलिए प्राय: स्कूल खोलते ही हैं, क्योंकि दावा है कि जज्बा महादलितों को पढ़ाने और
इंसान बनाने का है|
नेट
क्वालिफायड शिक्षक
गुल्ली
बिगहा प्राथमिक स्कूल के प्रभारी प्रधानाध्यापक गोपेन्द्र कुमार सिन्हा एनएसयुआई
की मगध विश्व विद्यालय में राजनीति करते थे| वे भूगोल में गोल्ड मेडलिस्ट हैं| नेट
क्वालीफाई किया था| अभी बीएपीएससी की मेंस परिक्षा दी है| कहते हैं प्रतिभा व
परिश्रम के बावजूद किस्मत में अच्छी नौकरी नहीं है शायद| सरकार की नीति के कारण वे
उच्च नौकरी में नहीं जा सके| फिलहाल मिशन है कि जहां हैं वहीं महादलितों को बेहतर
इंसान बनाएं|