एक दिवस पर दो महान आत्माओं की पूण्य तिथि
उपेन्द्र कश्यप
इस
रविवार का दिन खास है। दो महान आत्माओं की पूण्यतिथि है आज। जिनका अनुमन्डल के लिए
अतुलनीय योगदान रहा है। अनुमंडल का इतिहास इनके बिना लिखा ही नहीं जा सकता है।
स्व.रामपदारथ सिंह और स्व.रामविलास सिंह की पूण्यतिथि एक ही तिथि को होना मात्र
संयोग ही कह सकते हैं। हालांकि दोनों ने दो पीढियों का प्रतिनिधित्व किया। यह भी
संयोग ही है कि दोनों ने ओबरा, दाउदनगर और हसपुरा
क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया। दोनों परिवारवाद और वंशवाद के आरोप से मुक्त
रहे। परिवार के लिए संपत्ति अरजने के बदले समाज और क्षेत्र की चिंता अधिक की। दोनों
महान आत्माओं की राजनीतिक यात्रा, विचारधारा और योगदानों पर चर्चा प्रासंगिक लगता
है।
शिक्षक
से संत बने पदारथ बाबू
जीवन काल में खोले दस स्कूल कालेज
दाउदनगर(औरंगाबाद) ओबरा के मरवतपुर गांव में
सिंचार्इ विभाग के कर्मचारी गजाधर महतो के घर कब इस संत का जन्म हुआ, किसी को मालूम
नहीं। इनके पुत्र मनोरंजन सिंह को भी जन्मतिथि नहीं सिर्फ पूण्य तिथि 22 जून 1975 मालूम
है। लोकनायक जय प्रकाश नारायण और राम मनोहर लोहिया की विचारधारा से खासे प्रभावित
थे। उनकी शिक्षा मैट्रिक की गेट हार्इ स्कूल,
औरंगाबाद से हुर्इ। जबकि इण्टर के बारे में कोर्इ
जानकारी नहीं मिल सकी है। कोलकाता विश्वविधालय से उन्होंने बी.ए. की पढ़ार्इ पुरी
की और 1934
या 35
से 1952
के प्रथम चुनाव के पहले तक दाउदनगर के सिफ्टन हार्इ स्कूल (अब अशोक इण्टर स्कूल)
में शिक्षक के रूप में कार्यरत रहे। उत्कर्ष के अनुसार प्रथम चुनाव में संत पदारथ
सिंह के नाम से नामांकन किया तो विरोधी परचा खारिज कराने में लग गये। तत्कालीन
प्रधानाध्यापक जेमिनीकांत चटर्जी और ट्रेजरी अधिकारी ने गवाही दी कि राम पदारथ
यादव ही राम पदारथ सिंह हैं। तब उनका परचा स्वीकृत हुआ। यादव से सिंह टाइटिल रखने
की वजह तत्कालीन सामाजिक-राजनीतिक परिवेश का प्रभाव था। 1962 में
औरंगाबाद लोकसभा सीट से चुनाव हार गये। 1969
में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से ओबरा के विधायक बने।
उन्होंने शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए कर्इ विधालय पिछड़ों के इलाके में खोला
या खुलवाया। राष्ट्रीय उच्च विधालय, रामबाग, घटारो मध्य विधालय, तेंदुआ हरकेष
हार्इ स्कूल, राष्ट्रीय
मिडिल स्कूल दाउदनगर, मिडिल
स्कूल इमामगंज, बेल, भरूब
हार्इ स्कूल, जय
प्रकाश मध्य विधालय सिरिस, जय
प्रकाश हार्इ स्कूल सिरिस तथा रामलखन सिंह यादव महाविधालय औरंगाबाद उन्हीं की देन
है। रामलखन सिंह यादव कालेज के वे संस्थापक सह सचिव भी रहे हैं। उन्होंने दस
विधालय खोले या खुलवाया। मध्य से लेकर महाविधालय तक। नतीजा बौद्धिक विकास के
साथ-साथ पिछड़ों की राजनीतिक और सामाजिक चेतना का विकास होने लगा।
शान-ओ-शौकत
से दूर रहा गरीबों का मसीहा
कई बार बने मंत्री लेकिन रहे बेदाग
संवाद सहयोगी, दाउदनगर(औरंगाबाद) प्रखन्ड से
दाउदनगर को अनुमंडल बनाने वाले रामविलास सिंह का जीवन सादगीपूर्ण रहा है। 1970 के दशक में जब
सामाजिक बदलाव की इच्छायें करवट ले रही थीं तब 1967 में संयुक्त शोसलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार
बनकर विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़कर और मंत्री रहे रामनरेष सिंह के खिलाफ मात्र 23 मत से पराजित
हुए थे रामविलास सिंह। प्रथम लडार्इ में ही चर्चा बटोरी, प्रतिष्ठा
प्राप्त की और एक शक्तिशाली व्यकितत्व का जन्म हुआ। सन 1967 में संसोपा से
जीते। 1972
में जीत राज्य सरकार में पुलिस राज्य मंत्री बने। तब दाऊदनगर विधानसभा क्षेत्र
हसपुरा प्रखण्ड से जुडा था। सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ जब देश ने जयप्रकश नारायण
के नेतृत्व में सन 1974
में 'दुसरी
आजादी’ का विगुल फुका तो सत्ता के खिलाफ मंत्री रहते हुए उन्होंने त्यागपत्र दे
दिया। 1975
में दाऊदनगर विधानसभा क्षेत्र का वजूद खत्म हो गया। हसपुरा गोह विधानसभा क्षेत्र
के साथ नया आकार पाया तो दाऊदनगर को ओबरा विधानसभा क्षेत्र के साथ नयी पहचान मिली।
साल 1977 में
नारायण सिंह यादव और सूर्य भान सिंह जैसे दिग्गजों को मात देकर विधायक बने और 1978 में
ग्रामीण विकास मंत्री बने। साल 1985
और 1990
में पुन: विधायक बने। मंडल के नायक लालू प्रसाद
यादव के प्रथम मंत्रीमण्डल में रामविलास बाबू कारा सहाय एवं पुर्नवास मंत्री बने। साल
1995 के
चुनाव में उन्हें तत्कालिन सामाजिक आक्रोष के फलस्वरूप जन्में वामपंथी लहर में मात
खानी पड़ी। जीवन के उतराद्र्ध में भी उन्होंने हार नहीं मानी और जब साल 2000 के
चुनाव में राजद नेता लालू प्रसाद ने उन्हें प्रत्याशी नहीं बनाया तो निर्दलीय ही
चुनाव लड़ने उतरे। इन्हें चुनाव चिहन मिला ताला चाभी। यह उनके राजनीतिक जीवन की
आखरी लड़ार्इ बन गयी। 11 अप्रैल
2009 को
जब इस लेखक ने इनसे बात की तो उन्होंने
अपनी बीमारी से ज्यादा वर्तमान राजनीति की बीमार सिथति की चर्चा की। राजनीति को
सिद्धांतों के बदले स्वार्थ की राह चलते देखकर मर्माहत रामविलास
बाबू आचार्य नरेन्द्र देव,
एस एम जोषी,
मधूलिमय,
अटलविहारी बाजपेयी, कर्पुरी ठाकूर से प्रभावित रहे हैं। उनके
राजनीतिक गुरू रामानंद तिवारी रहें हैं। 22
जून 2009
को अंतत: रामविलास बाबू पटना के एक नर्सिग होम में
इलाज के क्रम में अपने अनुयायियों,
समर्थको और शुभचिंतको को छोड कर सदा के लिए चलें
गये।