Tuesday, 14 October 2025

1952 से अब तक सबसे कम 23 के अंतर से जीत हार का रिकार्ड

23 मत के अंतर से औरंगाबाद का है अटूट रिकार्ड

1967 में रामनरेश सिंह बनाम रामबिलास सिंह के बीच कांटे की टक्कर

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : औरंगाबाद जिले में 1952 से 2020 तक हुए बिहार विधान सभा आम चुनाव में सबसे कम 23 मत के अंतर से हार जीत का एक रिकार्ड 1967 में बना था। यह अब तक नहीं टूटा है। कांटे का असली मुकाबला यही हुआ था। हालांकि जिस विधान सभा क्षेत्र में यह रिकार्ड बना उसका वजूद ही खत्म हो गया। यह था दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र, जो 1952 से 1972 तक ही वजूद में रहा और उसके लिए विधायक का चुनाव होते रहा था। 

निर्वाचन आयोग से प्राप्त विवरण के अनुसार वर्ष 1967 के विधान सभा चुनाव में राम नरेश सिंह प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से चुनाव मैदान में थे। वे पूर्व में प्रथम चुनाव (1952) में जीत कर विधायक भी रह चुके थे। उनको कांटे की टक्कर दी राम बिलास सिंह ने। वे हसपुरा प्रखंड के अहियापुर के निवासी थे। वे संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के प्रत्याशी थे। उनका यह पहला चुनाव था। क्या गजब की टक्कर हुई थी। राम नरेश सिंह को 13604 मत मिला और राम बिलास सिंह को 13581 मत। मात्र 23 मत से जीत रिकार्ड आज भी कायम है। यह राम नरेह सिंह के साथ है और हार का रिकार्ड राम विलास सिंह के नाम। 


240 दाउदनगर विधानसभा क्षेत्र का परिणाम 

वर्ष 1967 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के जीते राम नरेश सिंह को 13604 मत मिला। दूसरे स्थान पर रहे संगठन सोशलिस्ट पार्टी के रामबिलास सिंह को 13581 मत प्राप्त हुआ। जीत-हार का अंतर मात्र 23 मत रहा। इंडियन नेशनल कांग्रेस के आरएस यादव को 7343, निर्दलीय सी सिंह को 4150, बीजेएस के एसएम पांडे को 3515, निर्दलीय एस शर्मा को 2539, जी राम को 667, जेपी सिंह को 664 और स्वतंत्र पार्टी के जेड एच खान को 620 मत प्राप्त हुआ। 


1163 मतपत्र अवैध घोषित

तब आज की तरह ईवीएम से मतदान नहीं होता था। मतपत्र होते थे, जिसे वैलेट पेपर भी कहा जाता है। मात्र 23 मत के अंतर से जिस विधानसभा में हार जीत हुई उस क्षेत्र में कुल 1163 मतपत्र अवैध घोषित कर दिए गए थे। आज ऐसी स्थिति में हंगामा और मुकदमा अवश्यंभावी दिखता है। बहरहाल निर्वाचन आयोग के दस्तावेज के अनुसार यहां 94117 मतदाताओं में 49246 ने मतदान किया। मतदान का प्रतिशत 52.32 रहा। कुल वैध मतपत्रों की संख्या 46 हजार 83 रही। 


Monday, 13 October 2025

सिर्फ मंच पर गूंजती है दाउदनगर को जिला बनाने की मांग



34 वर्ष हो गए अनुमंडल बने

17 वर्ष तक चला था संघर्ष

2020 चुनाव के वक्त भी बना था मुद्दा 

2006 में मिला अनुमंडल कार्यालय भवन

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) :  दाउदनगर को अनुमंडल बनाने के लिए 17 वर्षों तक संघर्ष चला था। अब इससे दोगुणा समयावधि 34 वर्ष हो गया इसे अनुमंडल बने हुए। डेढ़ दशक से दाउदनगर अनुमंडल के वर्तमान भूगोल को जिला बनाने की मांग जब तब उठते रही है। यह मांग प्रायः राजनीतिक मंचों पर उठती है। चुनावी वर्ष में भी गाहे बगाहे सांस्कृतिक या सामाजिक आयोजनों में भी इसकी मांग उठते रहती है। चुनाव के वक्त यह बड़ा मुद्दा बनता है। वर्ष 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी मुद्दा बना था। चुनाव में इस मुद्दे की खूब चर्चा होती है। मतदाताओं में इसे लेकर गर्माहट भी महसूस होती है। चुनाव बाद इस मुद्दे को लेकर सब मौन साध जाते हैं। न जनता की तरफ से मांग होती है, ना किसी संगठन की तरफ से आंदोलन होता है और ना ही किसी राजनीतिक दल या जनप्रतिनिधियों की तरफ से इसे लेकर आंदोलन किया जाता है। इस बार भी विधानसभा चुनाव की गर्माहट बढ़ रही है तो यह मुद्दा लोगों के जेहन को झकझोर रहा है। 31 मार्च 1991 को दाउदनगर को अनुमंडल का दर्जा मिला था। तब विधिवत उद्घाटन तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव द्वारा बतौर क्षेत्रीय विधायक एवं कारा एवं सहायक पुनर्वास मंत्री रामविलास सिंह (अब स्वर्गीय) की उपस्थिति में किया गया था। प्रशासनिक इकाई के तौर पर यहां अनुमंडल ने कार्य करना शुरू कर दिया था। करीब 15 वर्षों तक अनुमंडल कार्यालय शिक्षक प्रशिक्षण महाविद्यालय के पुराने भवन में चलता रहा और वर्ष 2006 में नया भवन बनकर तैयार हुआ तो अनुमंडल कार्यालय अपने नए भवन में चला गया। दाउदनगर अनुमंडल में चार प्रखंड (ओबरा, हसपुरा, दाउदनगर एवं गोह) आते हैं। दो विधानसभा क्षेत्र गोह और ओबरा है। इस अनुमंडल की आबादी वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार आठ लाख 28 हजार 87 है। कुल 69 पंचायत एवं 465 राजस्व ग्राम हैं। एक नगर परिषद क्षेत्र स्थित है। 




बढ़ रहा सुविधाओं पर बढ़ती जनसंख्या का दबाव

अनुमंडल में जो सुविधाएं हैं उसपर बढ़ती आबादी का दबाव बढ़ने लगा है। आवश्यक्ता के अनुसार संसाधनों का निर्माण सरकार नहीं करा पा रही है। शहरीकरण के साथ आबादी बढ़ने की गति तेज हुई है। वर्ष 2001 से 2011 के दशक में 27.89 फीसद रही, जबकि 1991 से 2001 के दशक में यह वृद्धि दर 25.77 रही थी। 2001 की जनगणना के अनुसार अनुमंडल के सभी चार प्रखंड गोह, हसपुरा, ओबरा और दाउदनगर की कुल आबादी 776987 है। इसके अतिरिक्त नगर पंचायत की आबादी 52340 है। अर्थात कुल 829329 है। इसमें ओबरा की 226379, दाउदनगर की 154225, हसपुरा की 160475 एवं गोह की 235908 और नगर पंचायत की आबादी 52340 है। ध्यान दें 1991 में दाउदनगर प्रखंड से अनुमंडल बना था। तब इसकी आबादी 515596 थी। 1991 में नगरपालिका क्षेत्र की आबादी 30331 थी जो 2001 में बढ़कर 38014 हो गई। और 2011 में 52340 है। यानी 1991-2001 के दशक में 25.33 फीसद वृद्धि हुई। 

2001-2011 के दशक में यह वृद्धि दर रही 37.68 फीसद रही।



जनसंख्या वृद्धि का कारण विकास 


आने वाले दशकों में जनसंख्या वृद्धि से विकास को होड़ लेने की आवश्यकता होगी। अनुमंडल बनने के समय नक्सलवादी गतिविधियां क्षेत्र में चरम पर थीं। इस कारण पिछडे़ इस इलाके में शिक्षा और प्रशासनिक विकास की गति तेज हुई तो ग्रामीण इलाके से बड़ी आबादी नये बने और खुद को गढ़ने में व्यस्त रहे शहर की ओर आयी। इससे शहरी क्षेत्र की आबादी काफी बढ़ी। जब जेल, न्यायालय बने, कई प्रतिष्ठित स्कूल खुले, शिक्षा का स्तर गत दशक की अपेक्षा काफी ऊंचा हुआ तो आबादी भी बढ़ी। बाजार का विस्तार हुआ। विभिन्न योजनाओं और सरकार की बदली प्राथमिकताओं ने विकास को गति दी तो ग्रामीण शहर में बसने को आकर्षित हुए और फिर नए बसावट वाले क्षेत्र के साथ जनसंख्या भी बढ़ती गयी। 



Saturday, 11 October 2025

दाउदनगर की आधी आबादी को पढ़ाने के लिए एक भी डिग्री कालेज नहीं

 


बड़ा मुद्दा : महिला महाविद्यालय 

58.85 प्रतिशत अनुमंडल में औसत महिला साक्षरता दर 

397790 है अनुमंडल में महिलाओं की जनसंख्या

828081 है अनुमंडल में कुल जनसंख्या

04 प्रखंड है गोह, हसपुरा, दाउदनगर और ओबरा

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : दाउदनगर अनुमंडल में दो विधानसभा क्षेत्र हैं गोह और ओबरा। चार प्रखंड हैं दाउदनगर, ओबरा, गोह और हसपुरा और कुल आबादी 828081 है। इसमें 397790 महिला हैं, लेकिन इनको उच्च शिक्षा देने के लिए एक भी डिग्री कालेज नहीं है। अनुमंडल में मात्र एक महिला महाविद्यालय है जो अंगीभूत नहीं बल्कि स्थाई संबद्धता प्राप्त है। इसमें सिर्फ स्नातक की पढ़ाई होती है। यहां सभी संकायों को मिलाकर कुल 1550 सीट स्वीकृत है। लेकिन यह कभी भी पूरी तरह नहीं भरता है। प्रायः 1300 से 1400 सीट ही भर पाता है। महाविद्यालय से संबंध प्रोफेसर यशलोक कुमार ने बताया कि गणित को लेकर बहुत अधिक रुचि नहीं होती है इसलिए इसमें सीट प्राय: खाली रह जाती है। कला की सभी सीट भरी रहती है। वर्ष 1983 में यह महाविद्यालय यहां निजी तौर पर शुरू किया गया था जिसमें इंटर की पढ़ाई होती थी, लेकिन 2025 में बिहार के सभी डिग्री कालेज से इंटर की पढ़ाई हटा दी गई। नतीजा यहां सिर्फ स्नातक की पढ़ाई होती है। इसके अलावा अनुमंडल में कोई भी डिग्री कालेज महिलाओं के लिए नहीं है। अनुमंडल मुख्यालय में अंगीभूत दाउदनगर महाविद्यालय है और यहां ही छात्राएं पढ़ती हैं। यहां भी इंटर की पढ़ाई बंद हो गई है। सिर्फ स्नातक की पढ़ाई होती है। स्नातकोत्तर की स्वीकृति तो मिली है लेकिन नामांकन प्रारंभ नहीं हुआ है। ऐसे में बड़ा मुद्दा यह है कि दाउदनगर अनुमंडल की आधी आबादी आखिर करें तो क्या करें। सरकार के तमाम दावों के बावजूद नारी शिक्षा को लेकर पर्याप्त संसाधनों का अभाव स्पष्ट दिखता है।


अनुमंडल में महिला साक्षरता दर 58.85 प्रतिशत

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार अनुमंडल में महिलाओं के बीच साक्षरता दर औसतन 58.85 प्रतिशत है। ओबरा विधानसभा क्षेत्र के दाउदनगर में 59.05 और ओबरा प्रखंड में 61.87 प्रतिशत महिला साक्षरता दर है। इसी तरह गोह विधानसभा क्षेत्र के गोह में 53.95 और हसपुरा में 60.54 प्रतिशत साक्षरता दर है।


दाउदनगर में महिला साक्षरता दर 59.55 प्रतिशत

दाउदनगर प्रखंड में वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार औसत साक्षरता दर 70.16 प्रतिशत है। इसमें पुरुष साक्षरता दर 79.93 प्रतिशत औऱ महिला साक्षरता दर 59.55 प्रतिशत है। शहरी क्षेत्रों में औसत साक्षरता दर 67.5 प्रतिशत है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 71.07 प्रतिशत शहरी क्षेत्र में पुरुष साक्षरता दर 74.72 और महिला साक्षरता दर 59.44 है। ग्रामीण क्षेत्र में पुरुष साक्षरता दर 81.74 और महिला साक्षरता दर 59.59 प्रतिशत है।

ओबरा में नारी साक्षरता दर 61.87 प्रतिशत

ओबरा प्रखंड की औसत साक्षरता दर 72.42 प्रतिशत है। जिसमें पुरुष साक्षरता दर 82.13 और महिला साक्षरता दर 61.87 प्रतिशत है।  ओबरा ब्लॉक में कुल साक्षर लोगों की संख्या 134,307 थी, जिनमें पुरुष साक्षरता दर 79,327 और महिला साक्षरता दर 54,980 थी।

गोह में 53.95 प्रतिशत महिला साक्षरता दर

गोह की साक्षरता दर 66.63 प्रतिशत पुरुष साक्षरता दर 78.25 और महिला साक्षरता दर 53.95 प्रतिशत है।  

हसपुरा में 60.54 प्रतिशत

 हसपुरा प्रखंड की औसत साक्षरता दर 71.46 है। पुरुष साक्षरता दर 81.61 और महिला साक्षरता दर 60.54 प्रतिशत है।  



समता पार्टी के जमाने से प्रयोग कर ओबरा में हारती रही जदयू

 



वर्ष 2000 और 2005 में जमानत न बचा सकी पार्टी 

सिर्फ प्रमोद सिंह चंद्रवंशी को मिला दूसरी बार टिकट 

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : जनता दल यूनाइटेड से पहले नीतीश कुमार की पार्टी समता पार्टी थी। तब से ओबरा विधानसभा क्षेत्र में जीत के लिए प्रत्याशी बदलने का प्रयोग पार्टी करती रही, लेकिन उसे कभी जीत नसीब नहीं हुई। जमानत बचा लेने की चुनौती के बीच उसे बहुत करीबी हार का भी सामना करना पड़ा है। वर्ष 1994 में लालू प्रसाद से नीतीश कुमार अलग हो गए और जार्ज फर्नांडिस के नेतृत्व में समता पार्टी का गठन हुआ। 1996 से उसने भाजपा के साथ गठबंधन किया। 1995 के चुनाव में उसका गठबंधन इंडियन पीपुल्स फ्रंट यानी आईपीएफ से था। वर्ष 1995 के चुनाव में यहां पहली बार राजा राम सिंह आईपीएफ के टिकट पर चुनाव जीतने में कामयाब रहे। इसके बाद वर्ष 2000 में समता पार्टी और आईपीएफ का गठबंधन टूट गया। समता पार्टी भाजपा के साथ जुड़ गई और इस गठबंधन से ओबरा समता पार्टी के खाते में गयी। तब समता पार्टी ने चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी को अपना प्रत्याशी बनाया, लेकिन वह 16060 मत लाकर पार्टी की जमानत भी नहीं बचा सके। इसके बाद फरवरी 2005 के चुनाव में समता पार्टी का अस्तित्व खत्म हो गया और जदयू बनी। जदयू से शालिग्राम सिंह यहां प्रत्याशी बने। वह 15993 मत लाने में सफल रहे लेकिन वह भी जमानत नहीं बचा सके। इसके बाद अक्टूबर 2005 में पहली बार जदयू ने यहां प्रमोद सिंह चंद्रवंशी को प्रत्याशी बनाया। वह चुनाव तो नहीं जीत सके लेकिन 23315 मत लाने में कामयाब रहे और पहली बार ऐसा हुआ जब जनता दल यू यहां अपनी जमानत बचाने में कामयाब रही। वर्ष 2010 में राजग की तरफ से यह सीट फिर से जदयू के खाते में रही तो उसने प्रमोद सिंह चंद्रवंशी को ही प्रत्याशी बनाया। वह 36014 वोट लाने में सफल रहे। मात्र 802 वोट से हारे। यह पहला अवसर था जब जदयू दूसरे स्थान पर रही। लगातार दूसरी बार जमानत बचाने में भी सफल रही। वर्ष 2015 में जब चुनाव हुआ तो राजग का एक हिस्सेदार उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी भी बनी। यह सीट रालोसपा के खाते में चली गई। उसने चंद्रभूषण वर्मा को अपना प्रत्याशी बनाया और वह 44646 वोट लाकर भी चुनाव हार गए। दूसरे स्थान पर रही। वर्ष 2020 के चुनाव में फिर जदयू के खाते में यह सीट गई और उसने बारुण निवासी सुनील यादव को अपना प्रत्याशी बनाया। वह 25234 वोट लाकर तीसरे स्थान पर रहे। यानी हर बार प्रयोग करने के बावजूद यहां जदयू चुनाव हारते रही।



तीन हार के बाद बीजेपी से सीट छीनी 

भारतीय जनता पार्टी अपने गठन के तुरंत बाद ओबरा विधानसभा चुनाव लड़ी। कोईलवां निवासी वीरेंद्र प्रसाद सिंह चुनाव लड़े और 38855 वोट लाकर चुनाव जीत गए। यानी पहली बार बीजेपी चुनाव लड़ी और चुनाव जीत गई। उसके बाद 1985 में वीरेंद्र प्रसाद सिंह 20924 वोट लाकर दूसरे स्थान पर रहे। वर्ष 1990 में 25646 वोट लाकर तीसरे स्थान पर रहे। तब तक बीजेपी की जमानत बचती रही। लेकिन 1995 में वीरेंद्र प्रसाद सिंह मात्र 3241 मत ही लाने में सफल रहे और उनकी जमानत नहीं बची। इसके बाद गठबंधन की राजनीति के कारण वर्ष 2000 से लगातार यह सीट बीजेपी के खाते में नहीं गई। उसके गठबंधन वाले साझेदार पार्टी के खाते में यह सीट रही, चाहे वह समता पार्टी हो, जदयू हो या रालोसपा। 


Thursday, 9 October 2025

जब जदयू के लिए ओबरा में किया दो प्रत्याशियों ने नामांकन

पटना से आये एक प्रत्याशी ने लिया नाम वापस

दूसरे प्रत्याशी ने सिंबल के साथ अंतिम दिन किया नामांकन

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : वर्ष 2010 का बिहार विधानसभा चुनाव ओबरा के लिए विशेष रहा है। अक्टूबर 2005 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव में 23315 मत लाकर तीसरे स्थान पर रहने वाले जदयू प्रत्याशी प्रमोद सिंह चंद्रवंशी की जगह निरंजन कुमार पप्पू ने नामांकन किया। प्रचार यह हुआ कि नीतीश कुमार की विशेष कृपा पर जदयू से टिकट पर ओबरा विधानसभा क्षेत्र से वही चुनाव लड़ेंगे। तब व्यवस्था यह थी कि नाम वापसी के दिन तक पार्टी का सिंबल जमा किया जा सकता है। बिना सिंबल के ही निरंजन कुमार पप्पू ने नामांकन कर दिया। नामांकन के अंतिम दिन प्रमोद सिंह चंद्रवंशी अचानक आनन फानन में पार्टी सिंबल लेकर आए और नामांकन कर दिया। अब व्यवस्था बदल गई है। अब नामांकन के साथ ही पार्टी का सिंबल देना आवश्यक होता है। प्रमोद सिंह चंद्रवंशी बताते हैं कि तब कई नेता ऐसे थे, जिन्होंने निरंजन कुमार पप्पू को जदयू का सिंबल मिलने का आश्वासन देकर नामांकन करवा दिया था। श्री सिंह बताते हैं कि जदयू का सिंबल निरंजन कुमार पप्पू को मिला नहीं था, इसलिए उन्होंने नाम वापस ले लिया। अगर नाम वापस नहीं लेते तो निर्दलीय लड़ना पड़ता। राजनीतिक परिस्थितियों के कारण उनके सामने नाम वापसी के अलावा कोई विकल्प नहीं था शायद। ओबरा विधानसभा चुनाव के इतिहास में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ था और न ही इस घटना के बाद ही हुआ। किसी पार्टी से दो-दो प्रत्याशी ने नामांकन कर दिया हो और एक को नाम वापस इसलिए लेना पड़ा हो कि उसे पार्टी ने सिंबल नहीं दिया ऐसा पहली बार हुआ था।



मात्र 802 मत से हर प्रमोद 



वर्ष 2010 के चुनाव में ओबरा थाना अध्यक्ष रहे सोमप्रकाश निर्दलीय चुनावी मैदान में थे। राजद से सत्यनारायण सिंह थे जो तत्कालीन विधायक थे। निर्दलीय सोम प्रकाश 36816 वोट लाकर चुनाव जीत गए। प्रमोद सिंह चंद्रवंशी जदयू के प्रत्याशी रहते 36014 वोट लाने में सफल रहे और 802 वोट से हार गए। बिहार में जब एनडीए का लहर था तब इतने कम वोट से प्रमोद सिंह चंद्रवंशी की हार पार्टी और खुद श्री चंद्रवंशी के लिए किसी बड़े आघात से कम नहीं था। इस चुनाव में सत्यनारायण सिंह को मात्र 16851 मत मिला था और वे चौथे स्थान पर चले गए थे। तीसरे स्थान पर 18461 मत के साथ भाकपा माले प्रत्याशी राजाराम सिंह थे।


हो गई थी जीत की घोषणा 


2010 का चुनाव इस मामले में भी खास था कि न्यूज चैनलों पर प्रमोद सिंह चंद्रवंशी को विजेता घोषित कर दिया गया था। दाउदनगर में जश्न मनाया जाने लगा और अचानक पता चला कि वे चुनाव नहीं जीत सके हैं। अंतिम तौर पर निर्दलीय प्रत्याशी सोम प्रकाश सिंह 802 वोट से जीत गए हैं।


Tuesday, 7 October 2025

31 बार की कोशिश में 2005 में मिली सफलता

 


दूसरे विधानसभा चुनाव में ही मैदान में थी पहली महिला प्रत्याशी 

पहली महिला प्रत्याशी जितना मत 1980 तक नहीं ला सकी कोई अक्टूबर 2005 के चुनाव में मिली सफलता, बनी पहली विधायक

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : आजादी के बाद से लेकर वर्ष 2020 तक कुल 18 बार बिहार विधानसभा के चुनाव हुए हैं। इस दौरान औरंगाबाद जिले के सभी विधानसभा क्षेत्र को मिलाकर कुल 31 बार महिला प्रत्याशियों ने विधायक बनने की कोशिश की। चुनावी मैदान में नारी शक्तियों ने अपनी महत्वाकांक्षा, अपना जोश दिखाया लेकिन सफलता मात्र एक बार मिली है। औरंगाबाद जिले से मात्र एक बार अक्टूबर 2005 के चुनाव में देव सुरक्षित सीट से रेणु देवी विधायक बनी। जदयू से जीती। इसके अलावा किसी महिला को सफलता नहीं मिल सकी। प्रथम चुनाव जब वर्ष 1951-52 में हुआ तो जिले के किसी विधानसभा सीट से कोई महिला प्रत्याशी मैदान में नहीं थी। 1957 के दूसरे चुनाव में नबीनगर विधानसभा क्षेत्र से सुरक्षित प्रत्याशी के रूप में शांति देवी बतौर निर्दलीय चुनाव मैदान में उतरी। वे छठे स्थान पर रहीं। तब उन्हें 3.12 प्रतिशत यानी कल 2965 मत प्राप्त हुआ था। इतना मत 1980 तक कोई दूसरी महिला प्रत्याशी नहीं प्राप्त कर सकी। बाद में वर्ष 1962 से लेकर 72 तक हुए लगातार चार चुनाव में एक भी महिला प्रत्याशी मैदान में नहीं उतरी। वर्ष 1977 में नबीनगर में अवंतिका शास्त्री और रफीगंज में राधा रानी निर्दलीय प्रत्याशी उतरी। वर्ष 1980 में रफीगंज और औरंगाबाद से बतौर भाजपा प्रत्याशी राधा रानी सिंह चुनाव मैदान में थी और संयोग ऐसा रहा कि दोनों विधानसभा क्षेत्र में आठवें स्थान पर रही। रफीगंज में 181 और औरंगाबाद में 820 मत मात्र प्राप्त कर सकी। वर्ष 1985 में देव से चंपा देवी निर्दलीय और ओबरा से कुसुम देवी बतौर कांग्रेस प्रत्याशी मैदान में थी। तब चंपा देवी को मात्र 582 मत मिला था। कुसुम देवी को 13395 मत या 15.10 प्रतिशत मिला था और वह तीसरे स्थान पर रही। तब तक उन्हें सर्वाधिक मत मिला था। यही कुसुम देवी या कुसुम यादव वर्ष 1995 में पुनः ओबरा से कांग्रेस से ही प्रत्याशी बनी तो उन्हें मात्र 2645 वोट मिला। वर्ष 2000 और फरवरी 2005 में जिला में कोई महिला प्रत्याशी चुनाव मैदान में नहीं उतरी। वर्ष 2005 के अक्टूबर महीने में हुए चुनाव में देव सुरक्षित से रेणु देवी जीती। पहली बार महिला विधायक जिले को मिली। 36.24 प्रतिशत अर्थात कुल 32417 मत प्राप्त हुआ। इसी चुनाव में लोजपा से खड़ी कुसुम देवी को 11113 वोट प्राप्त हुआ। वर्ष 2010 में चार विस् क्षेत्र नबीनगर, गोह, कुटुंबा व रफीगंज से कुल पांच प्रत्याशी मैदान में थीं। 2015 में गोह, ओबरा, नबीनगर व रफीगंज से कुल छह प्रत्याशी और वर्ष 2020 के चुनाव में नबीनगर से दो और औरंगाबाद से एक महिला प्रयाशी चुनाव मैदान में उतरी। 



वर्ष- विस क्षेत्र- प्रत्याशी/पार्टी - प्राप्त मत

1957- नबीनगर- शांति देवी निर्दलीय- 2965 

1977- नबीनगर- अवंतिका शास्त्री निर्दलीय- 1478 

रफीगंज- राधा रानी सिंह निर्दलीय- 1303 

1980- औरंगाबाद- राधा रानी सिंह बीजेपी- 820 

रफीगंज- राधा रानी सिंह- बीजेपी- 181 

1985- देव- चंपा देवी निर्दलीय- 582 

1985- ओबरा- कुसुम देवी कांग्रेस- 13395 

1990- नबीनगर- विशेश्वरी देवी निर्दलीय- 48 

1990- औरंगाबाद- उषा कुमारी आईपीएफ- 8859 

1995- देव- सुमित्रा देवी बीजेपी- 3934 

1995- देव-फुलवा देवी निर्दलीय- 120 

1995- रफीगंज- लीला सिंह बीपीपी- 1708 

1995- ओबरा- कुसुम कुमारी यादव कांग्रेस- 2645 

1995- ओबरा- सावित्री देवी निर्दलीय- 157

2005 अक्टूबर- देव- रेणु देवी जदयू 32417 

2005 अक्टूबर-देव-कुसुम देवी लोजपा- 11113 

2005 अक्टूबर-गोह- उर्मिला देवी सीपीआईएमएल- 2878 

2010- नबीनगर-अर्चना चंद्र बीएसपी- 11850 

2010-गोह- निर्मला देवी एनसीपी- 777 

2010- गोह- कुमारी अनुपम सिंह जेएमबीपी- 1508 

2010-कुटुंबा- मनोरमा देवी बीएसपी- 3535 

2010-रफीगंज- माधवी सिंह कांग्रेस- 6273 

2015-गोह- रीता देवी निर्दलीय- 956 

2015-ओबरा- नीलम कुमारी एसपी- 1798 

2015-ओबरा- रिचा सिंह निर्दलीय- 1868 

2015-नबीनगर- श्वेता देवी एएचएफबीके- 569

2015-नबीनगर- मंजू देवी बीएसपी- 17106 

2015-रफीगंज- उषा देवी एसएसडी- 1260 

2020- नबीनगर- मालती देवी एसपीएल- 556 

2020- नबीनगर-संजू देवी निर्दलीय- 1589 

2020-औरंगाबाद- अर्चना देवी- पीएमएस- 1614



इन वर्षों में एक भी महिला प्रत्याशी नहीं 

वर्ष 1951-52 में हुए प्रथम चुनाव में एक भी महिला प्रत्याशी जिले के किसी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव नहीं लड़ी। ऐसी ही स्थिति वर्ष 1962, 1967, 1969 और 1972 के लगातार चार चुनाव में एक भी महिला किसी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव नहीं लड़ी। इसके अलावा वर्ष 2000 और फरवरी 2005 में हुए चुनाव में एक भी महिला प्रत्याशी जिले के किसी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में नहीं उतरीं।


Saturday, 13 September 2025

5000 की भी नहीं रही थी आबादी, जब गढ़ी गयी जिऊतिया लोक संस्कृति

 


वर्ष 1860 से पहले से यहां जिउतिया लोक उत्सव 

जिउतिया लोकोत्सव का कारण प्लेग की महामारी

आज है नगर परिषद क्षेत्र की जनसंख्या 65543

उपेंद्र कश्यप, जागरण ● दाउदनगर (औरंगाबाद) : दाउदनगर में जितिया लोकोत्सव का आरंभ न्यूनतम वर्ष 1860 माना जाता है। यह मानने का आधार है एक लोकगीत। यह लोकगीत कसेरा टोली स्थित जीमूतवाहन भगवान के मंदिर पर यहां के श्रद्धालु गाते हैं। पंक्ति है- जितिया जे रोप ले हरिचरण, तुलसी, दमड़ी, जुगल, रंगलाल रे जितिया। संवत 1917 के साल रे जितिया, अरे धन भाग रे जितिया।

संवत 1917 अर्थात 1860 ईस्वी सन में यहां जिउतिया संस्कृति का आरंभ हुआ है। हालांकि इससे पहले इसका आरंभ पटवा टोली इमली तल तांती समाज द्वारा किया गया माना जाता है। जिसका नकल कांस्यकार समाज ने किया। कालांतर में इस समाज के लोगों ने गीत लिखे तो यह बात सामने आई कि कांस्यकार समाज के किस किस व्यक्ति ने इसका आरंभ किया। महत्वपूर्ण तथ्य है कि यहां का कांस्यकार समाज तब सबसे समृद्ध जातियों में शामिल था। इसकी वजह यह है कि यहां बर्तन उद्योग काफी समृद्ध था। कई कई रोलर मिल तक यहां बने लगे थे। प्रायः घरों में बतौर कुटीर उद्योग पीतल कांसा के बर्तन बनाए जाते थे। अर्थतंत्र मजबूत था तो स्वाभाविक है कि समाज भी अपेक्षाकृत अधिक सक्रिय और समृद्ध था। दूसरी तरफ पटवा तांती समाज तब श्रम का ही कार्य करता था और कुछ घरों में बुनकरी का कुटीर उद्योग भी चलता था। इमली तल इस तरह के गीत नहीं गए जाते जिससे यह ज्ञात हो कि यहां जितिया का आरंभ कब, किसने, किस परिस्थिति में किया।

यहां प्लेग देवी मां का मंदिर और लावणी की उपस्थिति यह बताती है यह संस्कृति का बीज तत्व महाराष्ट्र से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि यहां प्लेग की महामारी आई थी। जिसे रोकने के लिए तब चिकित्सकीय व्यवस्था चूंकि उपलब्ध नहीं थी तो लोग जादू टोना पर अधिक निर्भर करते थे और तब महाराष्ट्र से यहां ओझा गुनी लाये गए थे। इसके बाद से ही यह आरंभ हुआ था। प्लेग की महामारी से बचाव के जो उपाय किए गए, उसमें रतजगा भी था। रात-रात भर लगातार कई रात जागने के उपाय के तौर पर करतब, नौटंकी, नाटक, गायन समेत अन्य लोक कलाओं की प्रस्तुति की जाने लगी। यही बाद में परंपरा का रूप धरते हुए यहां की लोक संस्कृति में परिवर्तित हो गई। तब शहर की जनसंख्या बमुश्किल 5000 की रही होगी। महत्वपूर्ण तथ्य है कि 1885 में दाउदनगर को शहर का दर्जा प्राप्त हुआ था। यह नगर पालिका बना था और 1881 में यहां की जनसंख्या 8225 थी। इससे पहले की जनसंख्या का आंकड़ा उपलब्ध नहीं है। स्वाभाविक है कि इससे 20 साल पूर्व 5000 से अधिक आबादी होने का अनुमान नहीं लगाया जा सकता। फिलहाल 2011 की जनगणना के अनुसार इस शहर की आबादी 52340 है। जबकि वर्ष 2023 में हुए जाति सर्वे रिपोर्ट के अनुसार शहर की जनसंख्या 65543 है।